
केन्द्रीय विश्वविद्यालय लाईब्रेरी सांइस के द्वितीय सत्र में पढ़ने वाले विजय
सिंह का कहना है कि इन बाईक में आने वाले फीचर उन्हें बहुत भाते है। रफ्तार से वे
अपना तनाव भी दूर करते है क्योकिं वे इन्हें चलाते समय ऐसा अनुभव करते है कि वह बिल्कुल
मुक्त है और वे हर किसी चीज़ को पा सकते है तथा वे किसी ऐसी जगह पर है जिसके वे
नज़ारे ले रहे है,तथा इसे अनुभव भी कर रहे है।
विश्वविद्यालय के अकिंत कुमार जो समाजशास्त्र में द्वितीय सत्र के छात्र है उनका कहना है कि बाईक्स चलाना उनका पैशन है तथा वे इसे एक पागलपन भी कहते है। उन्हें हाइवे पर तेज़ी से बाइक चलाना पसंद है क्योकिं इससे वे अपने आप को औरों से अलग भी दिखाते है तथा और लोगों की हैरानी का केंद्र भी बनते है क्योकिं उन्होनें अकसर लोगों को यह कहते हुए सुना है कि आगे क्या होगा।
ऐसा ही कुछ मानना है विवेक का,
जो विश्वविद्यालय में लाईब्रेरी सांइस के द्वितीय सत्र के छात्र है जो यह मानते है
कि इन बाईक्स के साथ ही वे अपने आप को प्रकृति के साथ जुड़ा हुआ भी देखते है। बाईक्स
उनके एड्वचरस सफ़र को और भी रोमांचक, खुशनुमा बना देती है।
इतिहास में यदि इन बाईक्स के बारे मे देखा जाएं तो सबसे पहले इनकी
शुरुआत 19वीं शताब्दी के आस-पास मानी जाती है। साईकिल को और अच्छा बनाने के साथ ही
मोटरबाईक्स की शुरुआत हुई थी। सन् 1860 में पेरी मिशेव्स जो एक लुहार था जिसने
शुरुआत में एक साईकिल निर्माण किया था तथा इसके कुछ समय के बाद अपने बेटे के साथ
मिलकर मोटरबाईक्स का अविष्कार किया इसी सिलसिले ने धीरे-धीरे रफ्तार के दौर को आगे
बढ़ाया और नई दुनिया को अपना परिचय दिया ।
आखिर कारण जो भी हो चलाने का लेकिन इन बाईक्स के न जाने कितने ब्रांड़ है बाजार में जो इस आनंद को युवाओं
को देते है। मारुति,महिन्द्रा, रॉयल इनफिल्ड,होड़ा,केटीएम,डयक्ति जैसे ब्रांड़ इस
साथ को और भी बढ़ाते है।