Tuesday, May 30, 2017

YOUTH ICON : BHAGAT SINGH

By: Surinder Thakur


A brief outline of bhagat singh life, a legend's journey from starting to end and his sacrifices for the freedom of country.

Pride of Himachal Pradesh: Girl on fire

By: Narinder Sharma

In our society which is male dominated, now a days girls are also rising up in every field. They are giving tough competition boys. not in the field of education but also in the field of sports girls are trying their best. This has been proved by Seema in Asian youth athletics championship Bangkok 2017.
Seema while participating in the race

Girl from district Chamba of Himachal Pradesh brought happiness after winning bronze medal in Asian Youth Athletics championship. Seema is resident of Chamba district and belongs to a poor family.

She is a trainee in Sai Hostel training centre Dharamshala and studying in 12th class in Govt. Senior Secondary Girls School Dharamshala. She is the only third runner from Himachal Pradesh after Suman Rawat and Kamlesh to win a medal for the country in asian championship. she won the bronze medal by clocking a time of 10.05.27 in 3000 mtr race. 

She gave tough fight to the other participants who won gold and silver, it was a neck to neck competition. but after this she only settled for the bronze.“I could not catch up with the other athletes in the final sprint. A fellow competitor’s spikes hurt my leg during the race. Overall, I am happy with my timing,” said Seema after the game. 

Girls are showing their talent in every field. In 12th class results 35 out of 55 girls are in merit. Parents are also supporting their children to do what ever they want to.In result of that girls are taking part in every field whether it is education, sports, modeling, acting.

Girls like seema are giving motivation to the girls who wants to do something but they can't because of some problem. Sai hostel training centre in Dharamshala is helping girls who are interested in sports. These small small things will help in improving the image of women in society.

Mountains : Bliss of Beauty, Inspiration and Strength

By -: Rishika Sharma

How it feels to look at something, standing straight, firm and with proud. Covered with white shining snow, revealing beauty of being so high. Yes, mountains which provides us immense pleasure, are symbol of strength and being tough, looking straight no matter whatever comes.

Mountains unveiling the beauty of nature.
        Trackers love to live with mountains and keep exploring, always trying to reach at the top. It's an endless journey. Once you start exploring the nature, you don't need to answer anything else. People are always fond to see the world from top of the mountains. What a feeling that would be! Snow caped mountains, morning sun rays falling on it, rays passing through tiny droplets of dew on grass. Mesmerizing scenic beauty.

Snow caped Mountains
     There are different ranges of mountains throughout the world. Mountains are always full of teachings and learning, if one understands nature. It tells us to tackle the difficulties with confidence and stand still, no matter what situation is.

       Its difficult to climb to the top, but the view from the top is worthy of efforts. Hence, this tells everyone to understand that one should have the courage to face the ups and downs of life with positive attitude. And results will surely be fruitful.

Mystical mountains
       Hence, one should look around to find answers of their questions in nature. Mountains are merely one aspect. Keep searching, Keep fighting, Keep enjoying.

Peace captured

सेंट्रल यूनिवर्सिटी हिमाचल प्रदेश में निकाली गई भव्य एकता रैली

द्वारा:-शैलेश कौशल

सेंट्रल यूनिवर्सिटी हिमाचल प्रदेश में निकाली गई भव्य एकता रैली


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.हिमाचल प्रदेश केंद्रीय विश्वविद्यालय शाहपुर  से राष्ट्रीय एकता के तहत 12 मई सुबह 11.30 बजे से राजकीय माध्यमिक पाठशाला रैत के लिए रैली निकाली गई. विश्वविद्यालय के प्रतिकुलपति प्रो. हंसराज शर्मा ने विश्वविद्यालय परिसर से झंडा दिखाकर रैली को रवाना किया. इस मौके पर सामाजिक विकास केंद्र के निदेशक डॉ. बी.सी.चौहान भी सम्मलित हुए. इस एकता रैली के लि200 से अधिक लोगों द्वारा आवेदन प्राप्त हुआ था. यह रैली विश्विद्यालय के विद्यार्थियों एवं शिक्षकों द्वारा मोटर साइकिल, बस, कार आदि के द्वारा छतड़ी, द्रम्मण तथा शाहपुर में प्रदर्शन करते हुए रैत को गयी. सुरक्षा के लिए शाहपुर पुलिस भी डटी रही. भारत सरकार द्वारा प्रवर्तित एक भारत, श्रेष्ठ भारतके  एकता रैली का उद्देश्य भारतीय एकता एवं अखण्डता की भावना का सुदूर अंचलों , बच्चों ,युवाओं तक प्रसारित करना तथा उसमें देशभक्ति की भावना को प्रबल करना था. रैत स्थित उच्च माध्यमिक पाठशाला में बी.एस.सी भौतिकी की अदिति एवं टीम  तथा मैनेजमेंट डिपार्टमेंट के पंकज एवं उनके साथियों ने भारतीय एकता का परिचायक से संबंधित नुक्कड़ नाटक का प्रदर्शन किया. माध्यमिक विद्यालय रैत के प्राचार्य कुलभूषण ने न केवल विश्वविद्यालय को एकता रैलीके प्रदर्शन की संस्तुति दी बल्कि रैली में प्रस्तुत होने वाले नुक्कड़ नाटकसे विद्यालय के विद्यार्थियों को जोड़ने का भी कार्य किया. रैली का प्रभार मैनेजमेंट डिपार्टमेंट की सहायक प्रोफेसर मनप्रीत अरोड़ा संभाल रही थीं. इस रैली के संयोजक डॉ. खेमराज शर्मा, डॉ.आशीष नाग, डॉ.सुमन शर्मा और डॉ.रीता थे.  रैली में छात्रों के अतिरिक्त शिक्षकों में डॉ. दिलीप सिंह, डॉ. जगदीश, डॉ. सुरेन्द्र, डॉ. मोहिंदर, डॉ. विक्रम, डॉ. अदिति, डॉ. करुणाकर, डॉ. हेमराज, डॉ. दिलबाग आदि शामिल हुए.


यह जूनुन की रफ्तार है

रफ्तार जो जिद़गी में जूनुन भर दे और ऐसी रफ्तार जिसे हम अनुभब कर सकते है आजकल बाज़ार में आने वाली बाईक्स जो दिल में जूनून भर दे  बेहतर स्पीड के साथ अच्छा  माइलेज देती है । आकर्षक रंगों में आने वाली यह बाईक्स युवाओं के मन को भाती है । बदलते वक्त के साथ इनमे कई तरह के बदलाव हुए है जो इनके आकर्षण को और भी बढ़ाते है।

केन्द्रीय विश्वविद्यालय लाईब्रेरी सांइस के द्वितीय सत्र में पढ़ने वाले विजय सिंह का कहना है कि इन बाईक में आने वाले फीचर उन्हें बहुत भाते है। रफ्तार से वे अपना तनाव भी दूर करते है क्योकिं वे इन्हें चलाते समय ऐसा अनुभव करते है कि वह बिल्कुल मुक्त है और वे हर किसी चीज़ को पा सकते है तथा वे किसी ऐसी जगह पर है जिसके वे नज़ारे ले रहे है,तथा इसे अनुभव भी कर रहे है।

विश्वविद्यालय के अकिंत कुमार जो समाजशास्त्र में द्वितीय सत्र के छात्र है उनका कहना है कि बाईक्स चलाना उनका पैशन है तथा वे इसे एक पागलपन भी कहते है। उन्हें हाइवे पर तेज़ी से बाइक चलाना पसंद है क्योकिं इससे वे अपने आप को औरों से अलग भी दिखाते है तथा और लोगों की हैरानी का केंद्र भी बनते है क्योकिं उन्होनें अकसर लोगों को यह कहते हुए सुना है कि आगे क्या होगा।

ऐसा ही कुछ मानना है विवेक का, जो विश्वविद्यालय में लाईब्रेरी सांइस के द्वितीय सत्र के छात्र है जो यह मानते है कि इन बाईक्स के साथ ही वे अपने आप को प्रकृति के साथ जुड़ा हुआ भी देखते है। बाईक्स उनके एड्वचरस सफ़र को और भी रोमांचक, खुशनुमा बना देती है।

इतिहास में यदि इन बाईक्स के बारे मे देखा जाएं तो सबसे पहले इनकी शुरुआत 19वीं शताब्दी के आस-पास मानी जाती है। साईकिल को और अच्छा बनाने के साथ ही मोटरबाईक्स की शुरुआत हुई थी। सन् 1860 में पेरी मिशेव्स जो एक लुहार था जिसने शुरुआत में एक साईकिल निर्माण किया था तथा इसके कुछ समय के बाद अपने बेटे के साथ मिलकर मोटरबाईक्स का अविष्कार किया इसी सिलसिले ने धीरे-धीरे रफ्तार के दौर को आगे बढ़ाया और नई दुनिया को अपना परिचय दिया ।

आखिर कारण जो भी हो चलाने का लेकिन इन बाईक्स के न जाने कितने ब्रांड़ है बाजार में जो इस आनंद को युवाओं को देते है। मारुति,महिन्द्रा, रॉयल इनफिल्ड,होड़ा,केटीएम,डयक्ति जैसे ब्रांड़ इस साथ को और भी बढ़ाते है।





Monday, May 29, 2017

केन्द्रीय विश्वविद्यालय में मनाया गया चतुर्थ दीक्षांत समारोह

मुख्यातिथि प्रोफेसर नंदा(S)के साथ कुलपति कुलदीप चंद अग्निहोत्री(M) प्रतिभागी को सम्मानित करते हुए 
  केन्द्रीय विश्वविद्यालय  हिमाचल प्रदेश ने अपना चतुर्थ दीक्षांत समारोह धर्मशाला कॉलेज के कला  केन्द्र में शुक्रवार को मनाया। दीक्षांत समारोह में मुख्यातिथि के रुप में प्रोफेसर वेद प्रकाश नंदा ने शिरकत की, जो जॉन इवॉस यूनिवस्ट्री और स्टर्म कॉलेज ऑफ ला डेनवर कोलेराडो यूएसए, के प्रोफेसर है।
करीब 11 बज़े शुरु हुए इस समारोह में 15 विद्यार्थियों को गोल्ड मेडल, 4 को एड़वांस डिप्लोमा ,15 को सर्टिफिकेट  देकर सम्मानित किया गया। इसके आलाबा 10 को पीएचडी डिग्री तथा 228 विद्याथियों को डिग्रियां बांटी गई।
समारोह में भाषण देते हुए प्रोफेसर नंदा ने बच्चों को संघर्षों से नहीं घबराते हुए आगे बढ़ने का सुझाब दिया तथा उन्होनें अपने कुछ जीवन के पलों को भी याद किया।
इसके आलाबा विश्वविद्यालय के कुलाधिपति अरुण मायरा ने भी विद्यार्थियों को नई चीज़े सीखने को कहा ताकि वे अपने जीवन में आगे बढ़ सके।
केन्द्रीय विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर कुलदीप चन्द अग्निहोत्री ने कहा कि युनिवस्ट्री में लाइफ़ सांइस के कोर्स शुरु होगें तथा कांगड़ा  कला  को सीखने के लिए भी डिप्लोमा कोर्स शुरु किए जाएगें । बता दे कि कांगड़ा कला अपने आप मे एक कला के रुप मे जानी जाती है तथा इनके बारे में शोभा सिंह को एक महान चित्रकार के रुप में जाना जाता है।

कार्यक्रम में डिग्रियां बाटंने के पश्चात अन्त में कुलाधिपति ने बच्चों के साथ बातचीत भी की। जिसमें शिक्षा से सम्बधित, रोजंगार,भबिष्य के प्रति जागरुकता के बारे में बात की । इस बातचीत के अशं में सभी विभागों के डीन भी सम्मलित रहे। इस बातचीत में विद्यार्थियों ने काफ़ी रुचि दिखाई। समारोह में डिग्रियां लेने पहुचें विद्यार्थियों में भी काफ़ी उत्साह दिखा। 

Friday, May 5, 2017

Ban on the red flashing lights of vehicles: End to VIP culture

By: Narinder Sharma

Ban of red beacons in India has given a rise to end of VIP culture. Last week centre Government ordered to ban the red beacons of ministers, from 1st may it has been implemented. Additional information in this is that red and blue lights are getting removed from all the dignitaries. This is a symbolic decision taken by the central govt. in this month.     
Prime minister of India  Narendra Modi said "banned on red beacons aimed at ending VIP culture  mindset in India". But with this people have to change their mindsets also which are linked with red lights on the vehicles. this is not a new step taken by the central government, other government also tried this in past, but it is implemented now.

“There will be no exception to this”, Finance Minister Arun Jaitley said. The Ministry of Road Transport and Highways said in a statement that beacons were “perceived as symbols of VIP culture and have no place in a democratic country”, and hailed the decision of the cabinet as “historic”.  
India ban red beacons on cars of constitutional office bodies, so they will now sit in traffic with everyone else. it is expected now that there will be no red lights flashing on vehicles. Everyone will be treated equally. nobody will have to wait while some minister or VIP person is going on the road.

Bid to end VIP culture: No red beacons, two year foreign travel ban for ministers in Punjab. with ban on red flashing lights on vehicles, Punjab chief minister  has banned the foreign travel of ministers, in a bid to end VIP culture.
Beacons will be allowed on to the emergency vehicles ambulances and fire brigade. Now these vehicles don't have to wait in the lines, if there is some kind of emergency they will be given first priority.

Interview of CUHP talent by MOhd. Arslan Samdi

This is an interview of a student from Central University Of Himachal Pradesh who has majistical voice and have been into many stage shows and programs across India.

Faizan Ahmed was also selected in Rising Star show which is very popular among the Indian audience. It is a singing reality show judged by famous singer Diljit Dosanjh. Faizan is in final year of his master degree program from CUHP. He is born and brought up in Rampur city of Uttar Pradesh and is eagerly waiting for a break in Bollywood industry. In conversation with our journalist Mohd Arslan Samdi he told that he wants to be a successful playback singer and want to give voice for Khans, leading actors of the era. Faizan Ahmed is using social networking sites like Youtube, Facebook,Instagram to project his videos. He has also told that with the help of social networking sites he is getting lot of name and fame. People has started recognizing him. And not only audience  but many persons from Bollywood industry has contacted him after watching these videos.



शिक्षा व्यवस्था, मापदंड और हकीकत


शिक्षा मानव और समाज के बीच ऐसी कड़ी है, जो समाज के मध्य जागरूकता का प्रसार करती है । अतः मानव जीवन के उत्तरोतर विकास में शिक्षा का महत्वपूर्ण स्थान है। शिक्षित समाज सभ्य राष्ट्र का निर्माण करता है, राष्ट्रवाद का नहीं । परन्तु सभ्य समाज का निर्माण तभी सम्भव है, जब शिक्षा की गुणवत्ता उच्च स्तर की हो । शिक्षा की गुणवत्ता के लिए जरुरी है कि केन्द्र एवं राज्य  सरकारें शिक्षा के बजट में वृद्दि करें । लेकिन पिछले कुछ सालों से ही भारत का शिक्षा  बजट कम होता जा रहा है, और ऐसी दशा में वर्ल्ड रैंकिंग में अपना स्थान बनाने के प्रयास किये जा रहे है 

जनगणना के आंकड़ों  के अनुसार भारत की साक्षरता दर में वृद्धि हुई है, जो 2001 की जनगणना के अनुसार 65.38% थी, अब 2011 में बढ़कर 72.99 %  हो गई है । यह 7.61% की वृद्दि यह इंगित करती है कि साक्षरता दर में वृद्दि हुई है । मगर ये आंकडे से गुणवता को नहीं दर्शा पाते । लेकिन ये सब जाने बिना हम ग्लोबल रैंकिंग  की दौड़ में शामिल हो चुके है ।

भारत की उच्च शिक्षा ग्लोवलाइजेशन की होड़ में अपना स्थान प्राप्त करने के लिए प्रयास कर रही है । अगर शिक्षा बजट में निरन्तर इसी तरह से कमी आती रही तो सम्भवतः यह एक सपना मात्र भी रह सकता है । लेकिन सपने देखने का हक तो सभी को है,  इस पर कोई अंकुश नही लगा सकता । जहां कई बार पंचवर्षीय योजनाओं को लक्ष्य हासिल करना मुश्किल हो जाता है। तो शिक्षा के क्षेत्र में अन्तराष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहुंच बनाना वो भी तो विविध समस्याओं के बाबजूद नामुकिन सा लगता है।

हालांकि हमारी 12वीं पंचबर्षीय योजना का लक्ष्य भी सार्वभौमिक पहुँच सुनिशिचत करना, प्राथमिक स्तर पर उपस्थिति में सुधार करना और स्कूल छोड़ने की दर को 10 %  से नीचे लाना, शिक्षा के उच्च स्तरों पर नामाकंन बढ़ाना और कुल नामाकन अनुपात (GER) माध्यमिक स्तर पर 90 %  से अधिक तथा वरिष्ठ माध्यमिक स्तर पर 65 %  से अधिक बढ़ाना, समग्र साक्षरता दर में 80% की वृद्धि करना और लिंग अनुपात में 20 %  की कमी करना । इसके साथ बच्चों की अच्छी गुणवत्ता की अनिवार्य और निशुलक शिक्षा का भी जिक्र है । 

विश्विद्यालय आयोग के तहत उच्च शिक्षा की गुणवत्ता को जाचनें के लिए नैक (NAAC) की 1994 में स्थापना की गई , जिसका मुख्यालय बगंलोर में स्थापित किया गया है । भारत के सभी शिक्षण-संस्थान अगर NAAC के निर्देशों का अनुसरण करें तो शायद ही विश्व की कोई व्यवस्था भारत की शिक्षा व्यवस्था के सामने टिक पाती । मगर नियमों का उलंघन करना भारत में आम बात है, या यूँ मान लिया जाये तो इनकी कठोरता कागजों तक ही सीमित है ।  कुछ ऐसे ही नियम नैक (NAAC ) के भी हैं,  जिसमें कालेजों को हलफनामा देना पड़ता है। जिसके आधार पर ग्रेडिंग और बाद में रैंकिग दी जाती है। जिसके परिणामस्वरुप पर अभी तक शिक्षा की गुणवत्ता एंव आधारिक कमियां दूर हो जानी चाहिए थी । लेकिन अभी उम्मीद ही की जा सकती है, क्योंकि उम्मीद पर दुनिया कायम है । 

जहां एक तरफ NAAC का काम ग्रेडिंग देना है,  वहीं दूसरी तरफ मानव ससाधंन मंत्रालय ने 29 सितम्वर 2015 में रेकिंग के लिए अलग संस्था बनाई, जिसे नाम दिया गया, राष्ट्रीय संस्थागत रैंकिंग फ्रेमवर्क (NIRF)  हलाकिं अभी ये सभी शिक्षण-संस्थानों के अनिवार्य नहीं है ।  इसके साथ ही इन दोनों मापदंडों  के परिणाम में भी विपरीत सा तालमेल बना हुआ है।

NAAC की सूची में अगर किसी कालेज को A ग्रेड मिला है तो NIRF की रेकिंग में वह 20 वें नम्बर पर है , इसके आलावा अगर किसी कालेज को B ग्रेड मिला है तो वह कालेज नी रेकिंग में पूरे भारत में टॉप10 में जाता है सबसे पहले इन्हीं मापदणड़ों में स्पष्टता का अभाव है तो शिक्षा की गुणवता का हम सोच भी नहीं सकते ।

लगभग तीन दशकों में भारत में शिक्षा व्यवस्था एकदम जरदस्त सकंट से झूझ रही है । सरकारें आई चली गई लेकिन ये सब लगातार जारी है । इस खोखलेपन को लिए नये-नये मापदण्ड़ों को प्रयोग में लाया जा रहा है । बात स्पष्ट है कि, जहां भारत में अधिक सख्या में शिक्षण संस्थान है लेकिन पढ़ाने के लिए अध्यापकों का अभाव है । नियुक्तियां नहीं हो रही है, इसके अलावा विद्यार्थी और अध्यापक अनुपात जहाँ पी. जी. स्तर पर सोशल साइंस में 1:15 , साइंस के लिए 1:10 , कॉमर्स और मैनेजमेंट के लिए 1:15 तथा मीडिया के लिए 1:10 होना चाहिए था !  इसके साथ ही यू. जी. दर्जे में इसके और भी बुरे हाल है, जहाँ सोशल साइंस में 1:30 , साइंस में 1:25 और मीडिया कम्युनिकेशन में 1:10 का अनुपात होना चाहिए था

वहां भीड़ इकठी की जा रही है। इसके साथ ही विश्विद्यालयों के प्रोफेसरों पर प्रकाशन का दबाव अलग से वो कैसे भी करे। इस दवाब के माहौल में प्रकाशनों की वस्तु निष्ठा या निष्पक्षता और का क्या स्तर रहता होगा । बहुत ही सोचनीय विषय है । और यहां परिस्थिति को कैसे सामने लाया जा रहा है कि, सब कुछ सामान्य चल रहा हो ।

शिक्षण - संस्थानों में शिक्षा की गुणवत्ता के लिए तत्वों - फंड, फेक्लटी और फ्रीडम का होना बहुत अवश्यक रहता है । इन मौलिक अवयवों की अनुपस्थिति के रहते शिक्षा व्यवस्था को वर्ल्ड-क्लासमें लाने का जिक्र भी नही किया जा सकता है । भले ही भारत की उच्च शिक्षा व्यवस्था, विद्यार्थियों के सम्बंध में यू.एस. और चाइना के पश्चात तीसरी सबसे बड़ी व्यवस्था है । इन  आधारभूत समस्याओं का निदान किए बिना विश्व रेकिंग की भेड़चाल में शामिल होना मूल रुप से शिक्षा व्यवस्था खंडहर होने का प्रमाण है ।

इन कमियो के परिणाम स्पष्ट है । जब बजट की कमी होगी तो संस्थानों को चलाने के लिए फीस वृद्दि भी होगी, जिस का स्तर कुछ भी हो सकता है। जिसका प्रभाव पूर्ण रूप से विद्यार्थियों पर पड़ेगा  इसके अलावा अध्यापकों की कॉन्ट्रैक्ट के आधार नियुक्ति उनके ज़हन को प्रभावित करती हैं  बात साफ़ है कि, जब अध्यापकों को उनकी जरूरत के अनुसार मेहनताना नहीं मिलेगा तो वह अपनी क्षमता के अनुसार काम नहीं करेंगे जिसे अवशय ही शिक्षा गुणवत्ता प्रभावित होगी । इसका हाल ही का उदाहरण ,राष्ट्रीय उच्चतर शिक्षा अभियान  (RUSA) है,  जिसमें विद्यार्थियों  के साथ शिक्षकों के जरदस्त विरोध के बाबजुद भी से असित्त्तव में लाया गया । ऐसे में प्रतीत होता है कि व्यवस्था ही शिक्षा की कमर तोड़ रही है।

अगर शिक्षा व्यवस्था में सुधार नही हुए तो अजांम प्रतिकूल ही रहेंगें । जिसके शिक्षा प्रणाली के लिए बनाई गई कमेटियों आवरण को ढ़क नहीं पाएगा । इसका नुक्सान भावी पीढ़ी को होगा। ऐसे में हम भावी पीढ़ी को को बौद्धिक रुप से अक्षम और उनका भविष्य बर्बाद कर रहे है। सके आलाबा भारत में प्रत्येक युवा विदेश से पढ़ सकता नही है।

विश्व में सर्वाधिक युवा भारत में है, मतलब हमारा राष्ट्र युवावस्था पर है।पर इन युवाओं का दुर्भाग्य ही है कि इनकी आत्मा को युवा बनाने वाले तत्व जिनमें सर्वप्रथम जिक्र ही शिक्षा का आता है, जबरदस्त संकट से झूझ रही है । अगर इस बुनियदी आधार की व्यव्स्था में पारदर्शिता नहीं लाई गई तो किस प्रकार हम अपनी भावी पीढ़ी या युवाओं को कैसे फ्यूचर ओरिएंटेड बना पायेंगे । जबकि किसी भी देश के युवाओं को वहां की जागीर या रीढ़ की हड्डी माना जाता है , ऐसी दशा में उन्हें अपंग ही बनाया जा सकता है । 

ये जरूरी है की विकाशशील देशों को विकसित देशों का अनुसरण करना चाहिए , कि आधारभूत समस्याओं का कैसे समाधान किया जाए । अगर कोई देश एकदम से विकसित होना चाहता है , जिसकी सतही समस्याएं अभी हल नई हुई हो , तब तो ये यकीन मानिये असम्भव है । भारत की जमीनी स्तर की समस्याएं अभी हल नहीं हुई है , और आँखें आकाश को छूने में टिकी हैं । इस अवस्था में मुंह के बल तो गिरना तय है । 


फिल्मों में नियम-निर्देशों को बदलने की जरूरत



1952 में CBFC यानि केन्द्रीय बोर्ड़ फिल्म प्रमाणन की शुरुआत हई थी जिसे फिल्मों को निर्धारित निर्देशों के अनुसार जांचनें का अधिकार है। इस बोर्ड़ के निर्देश भी काफ़ी सख्त है। इसके नियमों के अनुसार किसी फिल्म को प्राय: चार वर्गो में रखा जा सकता है जो यह निर्धारित करते है कि फिल्म कौन से दर्शकों के लिए है या इसे कौन से उम्र के लोग देख सकते है।  कोई भी फिल्म उसके विषय के हिसाब से एक सर्टिफिकेट प्राप्त करती है यह U,U/A,A,S हो सकते है। अलग-अलग वर्ग में मिलने वाले सर्टिफिकेट के मूल्याकंन के मायने उसके अनुसार होते है। यह बोर्ड़ किसी फिल्म को नकारने अर्थात् बैन करने की भी क्षमता रखता है। यह बात तो CBFC बोर्ड़ की शक्तियों की बात हुई है लेकिन हाल में ही कुछ ऐसे मुद्दे देखने को मिले जो यह मानते है कि आने वाले समय में CBFC को अपने दिशा निर्देश बदलने चाहिए ताकि वे फिल्मों के दृश्यों पर लगने बाले कट को बचा सके । कुछ नामी निर्देशको का मानना है कि इस तरह के फिल्मों में कट लगने से प्राय: उनकी रचनात्मकता किसी दृश्य में नष्ट हो जाती है तथा वे  इसे  फिल्मों के व्यवसाय का बहुत बड़ा नुक्सान भी बताते है। लगातार दृश्यों में लगनें वाले कट से कई बार दृश्यों की निरंतरता खत्म हो जाती है ऐसा भी कुछ निर्देशकों का मानना है। प्राय: एक फिल्म शुरु करने से लेकर पूर्ण रुप से बनने तक एक लम्बी प्रक्रिया में चलती है जो यह दर्शाती है कि इसमे लगने वाला खर्च कितना होगा तथा यह एक व्यवसाय भी है जिसमें हिट होने से फायदा भी बहुत ज्यादा है। फिल्में मनोंरज़न का स्त्रोत मानी जाती है अपने निर्धारित समय में यह दर्शकों को आप में बांधने की क्षमता रखती है ताकि लोग उस फिल्म को देखते समय कुछ और न सोचे, सिर्फ उस फिल्म के सन्देश को समझ सके। कोई फिल्म यदि अपना थीम लोगों तक पंहुचाने तक सफल रहती है तो यह हिट भी हो सकती है
किसी फिल्म में से की मह्त्वपूर्ण दृश्य का कट होना इन सभी चीजों नुक्सान होता है। चाहे बात रचनात्मकता की हो या कुछ और लेकिन CBFC द्वारा फिल्म सर्टिफिकेट दे दिया जाता है जो यह बताता है कि फिल्म किस लेवल की है,कौन से दर्शकों  के देखने के योग्य है । यहीं से फिल्म का अच्छा या बुरा तय होता है ।
 हाल में ही रिलीज हुई फिल्म ‘उड़ता पजांब’  को काफी सेंसंर बोर्ड़ की मार झेलनी पड़ी थी और मामला कोर्ट तक पंहुच गया था तथा तब भी सेंसंर बोर्ड़ की काफ़ी आलोचना हुई थी। आखिर क्या सच में ही ऐसा करने से किसी फिल्म के लिए जोखिम हो सकता है या फिर हमारे सेंसंर बोर्ड़ को फिल्में मूल्याकंन करने का नजरिया बदलना चहिए। ताकि किसी भी फिल्म में दृश्यों की रचनात्मकता  को कट होने से बचाया जा सके तथा वो दिखाया जा सके जो वास्तव में सही है।